जगदीश रत्तनानी
काम को ट्रैक करने, रिकॉर्ड करने तथा वास्तविक समय के आधार पर पोषण से संबंधित डेटा एकत्र करने एवं आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को भुगतान करने के लिए एक कम तकनीक वाला समाधान विशेष रूप से क्रांतिकारी नहीं है। देश भर में लाखों लोगों द्वारा इसका कार्यान्वयन और सफल रूप से अपनाया जाना ही वह पैमाना है जहां काम का वास्तविक मूल्य निहित है। यह कठिन और चुनौतीपूर्ण काम है।
केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी की टिप्पणियों के मद्देनजर भारत के संबंध में ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) 2023 के निष्कर्षों को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। विपक्ष ने इनकी कड़ी और सही आलोचना की है। सूचकांक ने 2023 जीएचआई स्कोर की गणना के लिए उपलब्ध पर्याप्त डेटा के साथ 125 देशों में भारत को काफी नीचे 111वें स्थान पर रखा है। जीएचआई रिपोर्ट 2023 में भारत को 28.7 का स्कोर दिया गया है जो 'भूखÓ के स्तर को दर्शाता है। रिपोर्ट ने इसे 'गंभीर' (20 और 34.9 के बीच स्कोर) कहा है। 35 और उससे अधिक स्कोर को खतरनाक और 50 से ऊपर के स्कोर को बेहद खतरनाक के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। 'भूख' शब्द स्कोर की गणना करने के लिए उपयोग किए जाने वाले चार घटक संकेतकों के आधार पर सूचकांक को संदर्भित करता है- अल्पपोषण, बच्चों का विकास रुकना (चाईल्ड स्टंटिंग), बालकों की कमजोरी और बाल मृत्यु दर। जीएचआई के अनुसार घटक संकेतक कैलोरी के साथ सूक्ष्म पोषक तत्वों में कमी को दर्शाते हैं। जीएचआई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत स्रोतों से डेटा प्राप्त करता है और उसने अपने परिशिष्ट में डब्ल्यूएचओ, यूनिसेफ, यूएन, एफएओ और यूएसएआईडी के जनसांख्यिकीय और स्वास्थ्य सर्वेक्षण जैसे स्रोतों का उल्लेख किया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में बच्चों की कमजोरी (चाईल्ड वेस्टिंग) की दर दुनिया में सबसे अधिक 18.7 प्रतिशत है जो तीव्र कुपोषण को दर्शाता है। यह भारत को बांग्लादेश जैसे पड़ोसी से काफी नीचे रखता है जिसका स्कोर 19 है और जिसे 81 रैंक पर रखा गया है। इसे जीएचआई की सिवेरटी ऑफ हंगर स्केल पर 'मध्यम' के रूप में वर्गीकृत किया गया है। भारतीय आंकड़ों के मुकाबले यह एक ऊंची छलांग है,
लेकिन स्मृति ईरानी एक और तुलना की ओर ध्यान खींचती हैं। उन्होंने कहा कि जीएचआई 2023 की रिपोर्ट में पाकिस्तान भारत (रैंक 102, स्कोर 26.6) से आगे था। जैसे कि यह साबित करता है कि रिपोर्ट पर विश्वास नहीं किया जाना चाहिए।
यह पहली बार नहीं है जब सरकार आधिकारिक तौर पर रिपोर्ट की उपेक्षा करने और इसके निष्कर्षों को चुनौती देने और इसके स्रोतों पर सवाल उठाने के लिए सामने आई है। पिछले साल के जीएचआई आंकड़ों को भी इसी तरह से खारिज कर दिया गया था। महिला और बाल विकास मंत्रालय ने इस महीने की शुरुआत में जारी एक बयान में कहा कि जीएचआई 2023 में बच्चों के कुपोषण के लिए उपयोग किए जाने वाले 18.7 प्रतिशत के मूल्य की तुलना में उसके'पोषण ट्रैकर' ऐप द्वारा ट्रैक किए गए बच्चों की 'वेस्टिंग' प्रति माह 7.2 प्रतिशत की दर से नीचे रही है। फिर भी, ऐसी कई रिपोर्टें हैं जो बताती हैं कि ऐप का सही ढंग से उपयोग नहीं हो रहा है और कई फोन काम नहीं कर रहे हैं। जब एक मेगा परिवर्तन परियोजना लागू की जाती है तब प्रशिक्षण से संबंधित मुद्दे और कई बाधाएं अपेक्षित होती हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि ऐप के माध्यम से एकत्र डेटा सार्वजनिक डोमेन में स्वतंत्र रूप से उपलब्ध नहीं है। इसके अलावा भारत के व्यापक सर्वे एनएफएचएस- 5 ने बताया कि पांच साल से कम उम्र के 36 फीसदी बच्चे अविकसित (उनकी उम्र के हिसाब से लम्बाई बहुत कम) हैं। एनएफएचएस- 4 में देखे गए 38 फीसदी की तुलना में केवल मामूली बदलाव है जो पुराने कुपोषण को दर्शाता है। इसी तरह पांच साल से कम उम्र के 19 फीसदी बच्चे कमजोर हैं ( लम्बाई के हिसाब से पतले) जो एनएचएफएस- 4 में देखे गए 21 फीसदी से थोड़ा ही कम है और जो तीव्र कुपोषण का संकेत है। 32 फीसदी बच्चे कम वजन के हैं जो एनएचएफएस- 4 के दौरान मिले आंकड़े 36 प्रतिशत से कम हैं।
काम को ट्रैक करने, रिकॉर्ड करने तथा वास्तविक समय के आधार पर पोषण से संबंधित डेटा एकत्र करने एवं आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को भुगतान करने के लिए एक कम तकनीक वाला समाधान विशेष रूप से क्रांतिकारी नहीं है। देश भर में लाखों लोगों द्वारा इसका कार्यान्वयन और सफल रूप से अपनाया जाना ही वह पैमाना है जहां काम का वास्तविक मूल्य निहित है। यह कठिन और चुनौतीपूर्ण काम है जिसके लिए पोषण, समर्थन, विनम्रता और विफलता को स्वीकार करने की इच्छा आवश्यक होती है। आधिकारिक तौर पर दिए गए इस तरह के उत्साही बयान इस तरह के होते हैं जो बताते हैं कि ऐसी परियोजना सफल नहीं हो सकती या जो हैं आंतरिक रूप से डेटा संग्रह के लिए और बाहरी रूप से डेटा के लिए एक विश्वसनीय स्रोत के रूप में स्वीकार किए जाने की बाधाओं को दूर नहीं कर सकती है।
ध्यान देने वाली बात है कि शिक्षा, महिला, बच्चे, युवा और खेल पर संसद की स्थायी समिति ने मार्च 2021 में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि च्पोषण अभियान, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसी महत्वपूर्ण योजनाओं के तहत धन का बहुत कम उपयोग किया गया..., लाभ अक्सर इच्छित लाभार्थियों तक नहीं पहुंचते हैं और इसलिए मंत्रालय को विभिन्न शीर्षों के तहत आबंटित धन का पूरी तरह से उपयोग करना चाहिए और जमीनी स्तर पर परिणाम प्राप्त करने के प्रयास करने चाहिए।' समिति ने कहा कि आंगनवाड़ी कार्यों के लिए दिए जाने वाले मानधन (लगभग 3,500 रुपये प्रति माह और 500 रुपये प्रति माह की प्रोत्साहन राशि) को बढ़ाया जाना चाहिए। इसमें 'सभी आंगनवाड़ी केंद्रों को पीने और खाना पकाने के प्रयोजनों के लिए पाइप से पेयजल की आपूर्ति और शौचालयों में नल का पानी प्रदान करने के साथ अच्छी तरह से निर्मित, हवादार इमारतें प्रदान करने के लिए ठोस प्रयास करने तथा प्रशासनिक और वित्तीय कुप्रबंधन को रोकने के लिए आंगनवाड़ी केंद्रों की निरंतर निगरानी एवं निरीक्षण करने के लिए जमीनी स्तर पर एक प्रणाली तैयार करने के लिए कहा गया है।'
ये और अनेक ऐसे अन्य मुद्दे रचनात्मक सुझावों की फौज खड़ी करते हैं जो देश और विशेष रूप से मंत्रालय के सामने चुनौती के एक संकेतक हैं। इसका सबसे अच्छा हल समस्याओं की तलाश करने, मुश्किल पर ध्यान केंद्रित करने, निराशा को बाहर निकालने और शिकायतों के मुक्त प्रसारण और डेटा के मुक्त प्रवाह का उपयोग करने के लिए टीमों के साथ काम कर किया जा सकता है।
इस तरह का दृष्टिकोण वैश्विक विकास एजेंसियों और जीएचआई सहित अन्य रिपोर्ट लेखकों के साथ बातचीत शुरू करने के साथ-साथ चलता है। यह बताना चाहिए कि 'पोषण ट्रैकर' डेटा को बेहतर बनाने के लिए हर संभव प्रयास कैसे और क्यों किए जा रहे हैं और इसे भारत को सही और दुनिया को गलत कहने के लिए एक हथियार के रूप में उपयोग नहीं किया जा रहा है। 'भूख अंक' बढ़त पाने का विषय नहीं है। इसे किसी ऐप के लॉन्च या यहां तक कि पैसों की बारिश के साथ चमत्कारिक रूप से दूर नहीं जा सकता है। परिवर्तन आखिरकार एक धीमी प्रक्रिया है। जीएचआई के आंकड़े तेजी से बदलाव के लिए उत्प्रेरक होने चाहिए। इन आंकड़ों को सभी नागरिकों के नैतिक विवेक को उत्तेजित करने वाला होना चाहिए और हमें विकास के हमारे विचार पर ऐसे सवाल पूछने के लिए प्रेरित करना चाहिए कि जब हम उच्च जीडीपी विकास का जश्न मनाते हैं तो हमारे बच्चे पर्याप्त भोजन के बिना कैसे और क्यों सोते हैं?
विचार करने वाली बात यह है कि चेचक का उन्मूलन स्वास्थ्य के क्षेत्र में सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है। डॉ.एडवर्ड जेनर ने 18 वीं शताब्दी के अंत (1796 ईस्वी) में वैक्सीन की खोज की थी लेकिन चेचक को 1980 के अंत में ही विश्व स्तर पर समाप्त किया जा सका। इतना लंबा समय क्यों लगा? प्रौद्योगिकी या चिकित्सा कौशल समाधान का केवल एक छोर था; एक कठिन माहौल में, शीत युद्ध के दौरान तथा टीकाकरण के विचार के प्रतिरोध के बीच इसे लागू करने के लिए डॉ. डोनाल्ड ए. हेंडरसन जैसे नेता की आवश्यकता थी। वे प्रसिद्ध महामारी विज्ञानी और शिक्षक थे जिन्होंने चेचक के खिलाफ दस साल के लंबे अंतरराष्ट्रीय अभियान का नेतृत्व किया था। इसके लिए कड़ी मेहनत, कूटनीति, हठी भागीदारों के साथ काम करने और जमीनी स्तर से मिले वास्तविक डेटा के आधार पर बदलने की इच्छा की आवश्यकता थी। इसके लिए सुनने, धैर्य और डिप्लोमेसी की जरूरत थी ताकि एक ऐसे रास्ते पर चल सके जिसने अंतत: एक खतरनाक बीमारी को खत्म कर दिया और इतिहास रच दिया। यह आधुनिक चिकित्सा की सफलता थी लेकिन एक दृष्टिकोण की भी कम सफलता नहीं थी जो सीखने और समझने के लिए कठिन सीमाओं तक पहुंच गया। वर्तमान भारत के लिए यह सबक प्रासंगिक हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। सिंडिकेट: दी बिलियन प्रेस)